(1) ” बा “, बादल लाए भर-भरकर नीर
छायी है घनघोर चहुँ ओर घटाएं !
कहीं उड़ा ना ले जाएं इन्हें समीर…..,
ये डर है हमें बरसें नहीं घटाएं !!
(2) ” रि “, रिमझिम-रिमझिम बरसे हैं फुहारें
तो नाचे है तन-मन जीवन सारा !
और मन मयूर थिरके यहां-वहां पर…….,
चले दसों दिशाएं झूमें, गगन विशाला !!
(3) ” श “, शस्य श्यामला पावन धरती पर
जब आएं उतर नभ से बूंदे अमृत !
तब, आनंद बिखरे सब ओर यहां…..,
और ताल तलैया झूमें, चलें डगर पनघट !!
(4) ” बारिश “, बारिश की बूंदे जब छुएं तन को
तब झंकृत हो उठता है ये अंतर्मन !
फिर बाहर निकल आएं लेने आनंद…..,
और चहुँओर खिल उठा है कानन उपवन !!
(5)”बारिश”,बारिश में जमकर आओ हम तुम नहाएं
और चलाएं कागज की छोटी सी नाव !
फिर से बच्चे बन हम यहां पर मुस्कुराएं….,
और मधुर स्मृतियों में डूबे देखें ख़्वाब !!
(6) ” बारिश “, बारिश लेकर आए संग अपने खुशियाँ
और दिखलाए जीवन के यहां मधुर सपने !
सज-धज आयीं हैं घर कानन बगियां….,
और मिल आनंद बाँट रहें हैं यहां अपने !!
(7) ” बारिश “, बारिश की बूंदें हैं अमृततुल्य समान
दे जाएं आकर धरा को पुनर्जीवन !
चाहत ग़र इन बारिश बूंदों की पूछें…..,
तो, ये बतलाएं ये है आंनदोत्सव मिलन !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान