(1) ” न “, नभ उतर आया है धरा पर
लेकर सुन्दर अपना नज़ारा !
रहें देखते अपलक इसे निरंतर…..,
और गाए तन मन जीवन सारा !!
(2) ” ज़ा “, ज़ाहिर होता ये रुप देखकर
कि, मानो स्वर्ग ही उतर है आया !
देख धरा का ये अप्रतिम स्वरुप……,
जीवन में आनंद भर-भर आया !!
(3) ” रा “, रास आए देख ये अद्भुत नज़ारा
और सीधे आए दिल में उतर !
चहुँओर फैली महकती वादियाँ…..,
दिखलाएं पल-पल अनुपम मंज़र !!
(4) ” नज़ारा “, नज़ारा है ये दिल के जैसा
और दिल में ही अरमान जगाए !
देख इसे लगता है ऐसा…..,
कि, दिल में दिल उतर हैं आए !!
(5) ” नज़ारा “, नज़ारा देख सुंदर वसुंधरा का
जागें मन में भाव अलौकिक दिव्य !
मन मयूर नाचे है रह-रहकर…..,
और चले प्रकृति रुप दिखलाए भव्य !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान