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चल झूठी – अनुराधा पाण्डेय

तथ्य से अनभिज्ञ कब थी,

डूब जाऊँगी भँवर में,

जानती थी एक दिन मैं  ।

भीड़ तब तक ही रहेगी,

बात है जब तक विजय की ।

स्वार्थ में हो अंध वरना ,

कौन सुनता है हृदय की ?

टूट जाऊँगी विपद के ,

क्लेशमय अंतिम प्रहर में,

जानती थी एक दिन मैं…..

जानती थी एक दिन मैं….।

तथ्य से अनभिज्ञ कब थी,

डूब जाऊंगी भँवर में,

जानती थी एक दिन मैं।

पंथ में छल जायगा ही,

एक दिन विश्वास मेरा ।

ये न ज्यादा दिन टिकेगा ,

चंचलित मधुमास मेरा ।

जल मरूंगी ही सुनिश्चित,

छल मृषा की लौ प्रखर में,

जानती थी एक दिन मैं….

जानती थी एक दिन मैं….।

तथ्य से अनभिज्ञ कब थी,

डूब जाऊंगी भँवर में,

जानती थी एक दिन मैं

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

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