मनोरंजन

जहाँ दिखे, साथ दिखे – अनुराधा पाण्डेय

जहाँ दिखे हैं ,साथ दिखे हैं ।

तितली ,बादल,और सुमन तुम !

 

धरणी- सा मैं दौड़ा करता

नित दिन गति से क्षितिज छोर तक ।

अंत हीन है दूरी लेकिन ,

पहुँच न पाया मिलन मोड़ तक ।

भूल गया लघु अपनी सीमा…

मैं भू रज हूँ और गगन तुम !

 

जहाँ दिखे हैं साथ दिखे हैं।

तितली,बादल और सुमन तुम !

 

स्वप्न भले हो किन्तु हृदय से

चाहूँ मैं तुमको अवधारूं ।

ज्ञात नहीं कैसे मयंक को,

किन्तु व्योम से आन उतारूँ।

साँसों का हूँ मैं लघु कंपन …

और सनातन गुरु जीवन तुम !

 

जहाँ दिखे हैं,साथ दिखे हैं,

तितली,बादल और सुमन तुम !

 

कुछ भी हो पर मूक नयन से,

इतना तो मैं कह ही सकता ।

शलभ बना तो प्रणय शिखा में,

मृत्यु छोर तक दह ही सकता ।

मेरे इस लघु मृण्मय घट में –

तन भर मेरा पर धड़कन तुम !

 

जहाँ दिखे हैं,साथ दिखे हैं,

तितली,बादल और सुमन तुम !

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका , दिल्ली

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