कवि का वर्णन प्रिय ! कल्पित ।
तुझ -सा कब चाँद अनूठा ?
उस पर क्या हृदय समर्पित ।
घटता जो निशि दिन झूठा ?
यह प्रकृति सुंदरी मृण्मय ।
तेरा रति गंध सनातन ।
वो करती नय का अभिनय ।
तू अभिनव होती क्षण-क्षण ।
जड़,पतझर में झड़ जाते ।
तू मधुमासी वल्लरियां ।
जो व्यथा कभी भर जाते ।
क्या उनसे सुख की लरियां ?
मैं तुझसे प्रणय कलित हूँ।
इक गीत अनादि ललित हूँ
– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका , दिल्ली