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कवि हेमराज की प्रथम कृति समरांगण से….. अमेजोन/ फिलिफ्कार्ड पर उपलब्ध

neerajtimess.com – ओज के युवा हस्ताक्षर शिक्षक कवि हेमराज सिंह “हेम ” की प्रथम कृति “समरांगण से… ” को पढ़ते हुए बहुत गर्व की अनुभूति हो रही है कि हमारे बीच का एक युवा ओज लिखते लिखते इतनी गहराई में उतर गया कि आध्यात्मिकता से भरपूर श्रीमद्भगवत गीता को सरल शब्दों में काव्यमय रुप में आम जनमानस के बीच संपूर्ण गीता को सहज ग्रहणीय कृति के रूप प्रस्तुत करके नई पीढ़ी के कलमकारों के लिए रास्ते खोल दिए हैं।

पूज्य पिता राजेन्द्र सिंह और माताश्री श्रीमती प्रभात कँवर को समर्पित हेम प्रस्तुत महाकाव्य “समरांगण से……” की भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार विजय जोशी  ने लिखा है कि “अपने परिवेश में सजगता से यात्रा करता हुआ व्यक्ति जब अपनी संस्कृति और संस्कार के सानिध्य में रचनाकर्म में प्रवृत्त होता है, तो वह अपने स्व को भी संस्कारशीलता, रचनात्मक और ज्ञात्मक संदर्भों के विविध पक्षों से उसका साक्षात्कार कराती है। इस साक्षात्कार से प्राप्त अनुभूतियों से वह विकासोन्मुख दिशा और सृजन पथ की ओर बढ़ता रहता है।

“आत्म निवेदन” में “हेम” स्वयं कहते हैं कि कविता ने मुझे बचपन से प्रभावित किया, विद्यालयी जीवन में, विद्यालय में होने वाले हर छोटे बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा बनकर न राष्ट्रीय पर्वों पर कविता पाठ कर जो गर्वानुभूति होती थी, उस अंर्तबोध‌ को शब्दों में कह पाना संभव नहीं है।

महाविद्यालयी शिक्षा में हिंदी विषय का चुनाव भी साहित्य रुचि का एक कारण है । तुलसी, सूर, कबीर, रहीम, रसखान मीरा को जहां पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है, वहीं मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, हरिवंश राय बच्चन, सुमित्रानंदन पंत की रचनाओं ने मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला। किंतु सबसे ज्यादा प्रभावित किया रामधारी सिंह “दिनकर”  ने। जिसका असर मेरी रचनाओं में महसूस किया जा सकता है।

“श्रीमद्भागवत गीता” भारतीय संस्कृति की धुरी है, तो आध्यात्मिक चिंतन की परिधि भी है। “श्रीमद्भागवत गीता” ब्रह्माण्ड का सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह ग्रंथ न तो हमें निरा साधुता धारण कर कर्म पथ से पलायन कर वन-वन भटकने को प्रेरित करता है और न ही जीवन के निश्चित पड़ाव पर आकर इसे महज़ पठन-पाठन की अनुमति देता है। “श्रीमद्भागवत गीता” तो धर्म की परिभाषा को निज अस्तित्व के प्रकटीकरण में सोपान की बोधगम्यता देता है– (श्रीमद्भागवत गीता से)

युवा हेम ने गीता के 18 अध्यायों को 18 ही भागों में इसके व्यवहारिक पक्षों को भली-भांति व्याख्यायित, विस्तारित करते हुए सरल काव्यमय रुप में प्रस्तुत किया है। संस्कृत के श्लोकों को सहज सरल रूप में आसानी से सभी के समझ में आ सकने वाले छंदबद्ध शब्द रूप में गेयता प्रदान कर अनूठा ही नहीं अतुलनीय कार्य किया है।

गीता के अति श्रेष्ठ सार मोक्ष द्वार के पथ को सहज व सरल कर तम के नाश को शब्दों, भावों में प्रस्तुत किया है।

अर्जुन के माया मोह से ग्रसित होने पर अपने अस्त्र-शस्त्र को त्यागकर अपने कर्म पथ से विरत होने को बड़े  ही सरल शब्दों में प्रस्तुत किया है।

मोक्ष सन्यास योग यज्ञ दान तप की पवित्रता के साथ राजसी तामसी व सात्विकता को भी सरलता से स्वाभाविक कर्म की ओर प्रवृत्त तो होना माया-मोह का मिटना आदि प्रसंगों को काव्य रूप में प्रस्तुत कर सराहनीय कार्य किया है।

सर्व विदित है कि गीता महज पुस्तक नहीं, संपूर्ण जीवन सार है, जिसमें हमें अपने संपूर्ण जीवन के हरेक प्रश्न का उत्तर मिलता है। अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम उसे कितना आत्मसात कर पाते हैं।

हेमराज सिंह “हेम” ने सरल सहज शब्दों में संपूर्ण गीता को आमजन को आसानी से समझ में आ सकने वाले भावों से सुसज्जित कर जैसे अपनी ओर से अमूल्य उपहार सौंपा है।

साहित्य सागर प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित 208 पृष्ठों का यह महाकाव्य अमेजोन/ फिलिफ्कार्ड  पर उपलब्ध है। जिसकी कीमत मात्र 350 रुपए मात्र है। जिसे आकर्षक कवर और उत्कृष्ट पेपर पर मुद्रित इस महाकाव्य की उपादेयता को देखते हुए नगण्य कह सकते हैं। जिसे आप सर्च कर इसे ऑनलाइन ऑडर देकर प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही अपने प्रियजन के जन्मदिवस, वैवाहिक वर्षगाँठ वह अन्य विशेष अवसरों पर यादगार के रूप में उपहार स्वरूप भी भेंट सकते हैं। इस महाकाव्य में उस पीढ़ी को सचेत करने की महाशक्ति है जो आधुनिकता की अंधी दौड़ में अपनी सभ्यता, संस्कृति से भटकती जा रही है।यह महाकाव्य हर उस व्यक्ति, जो अपने पारिवारिक, सामाजिक रिश्तों को भूल चुका है, को जीवन-पथ के सूत्र प्रदान करने में संपूर्ण समर्थ है।

साथ ही मेरा मानना है कि सभी सरकारी, गैर सरकारी शैक्षणिक संस्थानों, पुस्तकालयों में शासन प्रशासन ऐसे महाकाव्य को स्थान दिलाने के लिए कदम उठाकर नई पीढ़ी को इस महाकाव्य को पढ़ने के लिए प्रेरित करने जैसा कदम भी बढ़ा ने की दिशा में आगे बढ़ाये, जिससे हमारी आज की और आने वाली पीढ़ी लाभान्वित होने के साथ अपने जीवन पथ को भी सुगम सहज बना सके।

हेम  के श्रमसाध्य महाकाव्य की सफलता की शुभेच्छा के साथ उन्हें निजी तौर पर भी इस महाकाव्य के सृजन/प्रकाशन की बधाइयां। मां शारदे की कृपा उनके ऊपर बनी रहे और वे निरंतर समाज को लाभान्वित करने वाले साहित्य सृजन पथ पर निरंतर अग्रसर रहें। असीम शुभेच्छा, स्नेह आशीर्वाद के साथ

पुस्तक समीक्षा-

प्रकाशन – साहित्य सागर प्रकाशन जयपुर

पृष्ठ – 208 पृष्ठ

उपलब्धता – अमेजोन/ फिलिफ्कार्ड पर उपलब्ध

कीमत – मात्र 350 रुपए

समीक्षक – सुधीर श्रीवास्तव,गोण्डा, उत्तर प्रदेश

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