जल ,जमीन, जंगल के मुद्दे
शिक्षा, स्वास्थ्य रोजगार के मुद्दे
मुद्दे दरअसल मुद्दे नहीं होते
ये “पोषक” होते हैं
आती जाती सरकारों के
लेखकों, कवियों और
पत्रकारों के।
और इन सबसे इतर जो कभी कभी
क्रांतिकारी समाजसेवी पनप आते हैं
उनके भी,
सरकारें तो मुद्दों पर ही चुनाव लड़ेंगी
कविताएं लिखी जाएंगी,
लेख , आलेख प्रकाशित होंगे
और हां वो जो अवतारी लोग हैं
वो पुरस्कृत सम्मानित होंगे नवनिर्वाचित
सरकारों द्वारा,,,,,,
पुनः वो मुद्दों को लेकर जनता के
मध्य आयेंगे और अबकी बार
सत्ताओं के ध्वजवाहक होकर
मुद्दे पुनश्च इन सबका लालन-पालन
करेंगे पोषक बने रहेंगे।
– ज्योत्स्ना जोशी , चमोली , उत्तरकाशी, उत्तराखंड