जब पहली बारिश की बूँदें , वसुधा पर नर्तन करतीं,
सोंधी – सोंधी रज खुशबू से, आनंदित तन मन करतीं।
डोर थाम कर आशाओं की , खेतों में हलधर जाता,
लगन, परिश्रम वर्षा बूँदें, बीजों को कंचन करतीं।
ताल, नदी, झील और झरने, हर्षाते हैं जल पाकर ,
बारिश की पहली बूँदें नित, मोहक हर आनन करतीं।
बारिश की बूँदों से मिलकर, वृक्ष झूमने लगते हैं,
प्रेम लुटा कर बूँदें अपना, गुंजित हर उपवन करतीं।
हरियाली के मधुर तराने, कलम जन्मने लगती है,
नगमों की बरसातें सुरभित,कवि का मन आँगन करतीं।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश .