मनोरंजन

अहसास – ज्योति अरुण

संभालू  मगर  दिल संभलता नहीं  है,

मचलता  तुम्हें   देख  सुनता  नहीं है।

 

मची दिल में हलचल वो कैसे सुनाऊं

ये जज़्बात दिल के जो छुपता नहीं है।

 

अगर आप हंसते तो  दिल  मुस्कुराता,

कसम तुम बिना दिल ये लगता नहीं है।

 

करें दिल हमारा तुम्ही से ही उल्फ़त,

तुम्हारे  सिवा  कोई  भाया  नहीं  है।

 

हुआ दिल का आंगन मुहोब्बत से रौशन,

नहीं पल वो कोई  जो   महका  नहीं  है।

 

हुई जब से उल्फ़त छुये मन का कोना,

बचा अब न तन मन जो भीगा नहीं है।

 

सभी “ज्योति” जाने वो जज़बात हमदम,

वो अहसास  दिल भी जो कहता नहीं  है।

-ज्योति वरुण श्रीवास्तव,नोएडा, उत्तर प्रदेश

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