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ग़ज़ल – ज्योति श्रीवास्तव

उफ़ कहीं अब खता न हो जाये,

आपका  ही  नशा  न  हो  जाये।

 

जब से उल्फत बसी निगाहों में,

प्रेम  मेरा  खुदा   न  हो जाये।

 

तुझ को सांसों में जो बसाया है,

प्यार का सिलसिला न हो जाये।

 

हम को इतना न सनम तडपाओ,

घुल के तुझ में फ़ना न हो जाये।

 

हम जो  सरकार पे लिखेंगे  गर,

तो सियासत  ख़फ़ा न हो जाये।

 

उनका महफिल में मुस्कुराना वो,

“ज्योति” दिल की दवा न हो जाये।

-ज्योति अरुण श्रीवास्तव, नोएडा, उत्तर प्रदेश

 

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