मनोरंजन

गीतिका – मधु शुकला

हर  समय  अनुरक्त  रहती  लाड़ले के प्यार में,

माँ  रहे  शिशु  को  लपेटे  बाँह  के मृदु हार में।

 

प्रीति  का  बादल  उमड़ता  माँ हृदय में सर्वदा,

भीगता  बालक  तभी  तो  नेह  की बौछार में।

 

खार चुन जब माँ बिछाती पुष्प जीवन राह पर,

चल सकें निर्बाध बच्चे तब समय की धार में।

 

शिशु  सुरक्षा  हेतु   माता  कष्ट  लाखों  झेलती,

त्याग माँ का व्याप्त रहता शिशु खुशी आधार में।

 

छाँव ममता की मिले जिसको वही धनवान है,

अनुभवों  से  यह  सभी  कहते  रहे  संसार में।

— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश

Related posts

पार लगायें – अनिरुद्ध कुमार

newsadmin

कविता — जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

देश राग – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

Leave a Comment