दुआओं में मेरे सदा तुम महकना,
खुला है गगन अब हमेशा चहकना।
खड़ा आज दर पे फरियाद लेकर,
रखो हाथ अपना पड़े ना तड़फना।
सुनो आ गया है ये नाचीज दर पर,
भरूँ आज झोली,पड़े क्यो बिखरना।
मिले अब मुहब्बत हमें आज दर से,
न जाऊँ मैं खाली पड़े ना तड़फना।
जमीं अब मिली,आसमां भी खुला है,
मिले साथ तेरा पढें ना सिसकना।
दुआ कर रहा हूँ खुदा बात सुन ले,
तू खुशियाँ हरिक इनके दामन मे भरना।
– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली , पंजाब