बातें कर के मीठी – मीठी, राज चुराते हैं।
तन के उजले मन के काले, दुख पहुँचाते हैं।
नये-नये लोगों से परिचय, होता ही रहता।
मानव अपनी पीड़ा कहकर, मन हल्का करता।
जान कष्ट में जन को कपटी, अति हर्षाते हैं….. ।
तन के उजले मन के काले, दुख पहुँचाते हैं….. ।
सामाजिक प्राणी है मानव, रिश्तों में जीता।
कर्म करो मत फल चाहो, कहती है गीता।
नैतिकता की स्वार्थ लिप्त जन, हँसी उड़ाते हैं……. ।
तन के उजले मन के काले, दुख पहुँचाते हैं….. ।
मन माने जिनको शुभचिंतक, नाज करे जिन पर।
दुर्दिन में वे साथ न देते, दूर रहें अक्सर…… ।
अपनेपन का ढ़ोंग रचा कर, हृदय जलाते हैं…….. ।
तन के उजले मन के काले, दुख पहुँचाते हैं…… ।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश