मनोरंजन

कविता – रेखा मित्तल

आए हैं दुनिया में जब से

निभा रहे हैं किरदार अनेक

दुनिया है एक रंगमंच

हम सब है कठपुतलियां

कभी बेटी,बहू, कभी पत्नी

कभी मां और सखी बनकर

समझौते अनेक किए मैंने

इच्छाओं और सपनों कै साथ

कठपुतलियों की भांति

बंधे हैं परिस्थितियों के साथ

समय की डोर खींचती है

कभी सुख तो कभी दु:ख

निभाते निभाते किरदार अनेक

भूल गई अपने अस्तित्व को

तलाश है! शायद ढूंढ पाऊं

अपने वजूद और अस्मिता को।

✍- रेखा मित्तल, सेक्टर-43, चंडीगढ़

Related posts

हिंदी कविता – सविता सिंह

newsadmin

उज्जैन में विराजित हैं विक्रमादित्य की राजलक्ष्मी के रुप में प्रसिद्ध दुर्लभ और अद्वितीय गजलक्ष्मी – देशना जैन

newsadmin

ज्येष्ठ सी मैं तप रही हूँ – अनुराधा पाण्डेय

newsadmin

Leave a Comment