मनोरंजन

धंधा – पवन कुमार

बस्ता  भारी  हो चला , मिलीभगत में  डूब।

गोरख धंधा फल रहा, स्कूल-स्कूल में  खूब।।

स्कूल-स्कूल में खूब, कटी सिस्टम की चाँदी।

सुप्त पड़ी सरकार, बनी  स्कूलों  की  बाँदी।।

अभिभावक  बेहाल, मिले  कैसे  अब  रस्ता।

भारी भरकम  फीस, रिक्त विद्या का बस्ता।।

 

पहले देवें  स्कूल में, फिर  घर  बाँटे  ज्ञान।

अध्यापन के खेल  में, सूखे  आत्मा- प्रान।।

सूखे  आत्मा- प्रान,  मूक   दर्शक  हैं सारे।

पुस्तक भी हर साल, बदल जाती है प्यारे।।

उठते  नहीं सवाल, तंत्र जिससे कुछ दहले।

बदली जाती ड्रेस, क्लास बढ़ने से  पहले।।

 

पेन्सिल कॉपी किट कलर, बस्ता मिले विशेष।

राशन सब्जी ही  बची, अब मिलनी बस शेष।।

अब  मिलनी  बस शेष,  ज्ञान   पैसों  में  देते ।

नंबर मिलते खास, ट्यूशन  जो घर  पर लेते।।

कह ‘सूरज’ कविराय,  लूट  कैसे  हो केन्सिल।

अणु बम सा विस्फोट, करें अब कॉपी पेन्सिल।।

– पवन कुमार सूरज, देहरादून, उत्तराखंड

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