महक उठा है गुलशन-गुलशन,
महुआ टपके महके चंदन,
यह उनकी बैसाखी है…
नदियों का भी शुद्ध हुआ जल,
हुईं हवाएं चंचल-चंचल ,
यह उनकी बैसाखी है…
कुदरत का हर काम है जारी,
रात दिन आयें बारी – बारी,
यह उनकी बैसाखी है…
जो क़ादिर की रज़ा में रहते,
दुख सुख दोनों हंस कर सहते,
यह उनकी बैसाखी है…
याद करो गुरुओं की वाणी,
सुखी बसे हर एक प्राणी,
फिर सबकी बैसाखी है…
खेतों से दाने घर आएं,
खुशी से दामन सब भर जाएं,
फिर सबकी बैसाखी है…
नफ़रत के बुझ जाएं चिराग़,
प्यार के महके हर सू बाग़
फिर सबकी बैसाखी है…
– डा.जसप्रीत कौर फ़लक.
लुधियाना, पंजाब