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अबका जोड़ीं लाभ व हानी – अनिरुद्ध कुमार

जीवन झूला झूलत बानी,

झेल रहल बानी मनमानी।

व्याकुलता रहरह हलकोरे,

सब कुछ लागे पानी पानी।

 

धीर अधीर में परेशानी,

दौड़ धूप में भी हलकानी।

बीत रहल पल धीरे धीरे,

ई ज़ीवन के राम कहानी।

 

कौने दम पर तानातानी,

लोगो बोली की नादानी।

रात दिन सोंचतें बीतेला,

जाड़ा गर्मी एक समानी।

 

आशा में अंजोरो नइखे,

अंधेरा के कहाँ निशानी।

समय ताल पे तनमन डोले,

कौने मुखसे बोलीं बानीं।

 

संगी साथी केहू नइखे,

केहूबा ना आनी जानी।

जीवन साथी छोड़ परइली,

लहर गिनेंनी पीटीं पानी।

 

जीवन ताल तलैया सूखल,

बेमतलबके के पहिचानी।

हार गइल बानी जिनगी से,

अबका जोड़ीं लाभ व हानी।

– अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड

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