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गजल – ऋतु गुलाटी

दर्द को भीतर छिपाया कीजिए।

प्यार दिल मे कुछ जगाया कीजिये।

 

पापियों को अब नचाया कीजिए।

नेक  बंदे को उठाया कीजिये।

 

बढ गया है पाप जग मे अब बड़ा।

पाप जग से तुम मिटाया कीजिये।

 

बात दिल की आप अब कह दो जरा।

सितम हम पर अब न लाया कीजिये।

 

गम मे डूबे मुफलिसी मे जी रहे।

गम से अब उनको बचाया कीजिए।

 

चाँद से तुम आज हमको अब लगे।

पास अपने तुम बिठाया कीजिये।

 

बोलबाला झूठ का फैला यहाँ।

झूठ से दामन बचाया कीजिये।

 

प्यार से ही बागँबा अब है टिके।

मुस्कुरा कर घर हँसाया कीजिये।

– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली , पंजाब

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