किसी की आँख नम यदि आपके व्यवहार से होगी,
खुशी उपलब्ध जीवन भर न सच्चे प्यार से होगी।
सुखद अनुभूति रसना को मधुर फल ही कराते हैं,
भला संतृप्त वह कैसे करेला सार से होगी।
प्रभावित कर नहीं पातीं बिना अनुभव लिखीं बातें,
कुशलता प्राप्त कवि को वेदना के भार से होगी।
बहुत ऊँचे सदन की छत न लख पाती धरा का दुख,
रहें सम द्वार तो सहभागिता विस्तार से होगी।
रखा मष्तिष्क से नाता हृदय को रौंद कर जग में,
हमारी भेंट फिर कैसे अतिथि सत्कार से होगी।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश