क्षुब्ध मन से क्रुद्ध तन से युद्ध करना चाहते हो,
क्यूँ गरल से पय तरल को शुद्ध करना चाहते हो।
गर गरल धर शर सरासर वक्ष पर संधान होगा,
छत हृदय की वेदना का क्या तुम्हें अनुमान होगा।
बुद्ध सम प्रबुद्ध होकर मुग्ध होने क्यूँ लगे हो ,
मरीचिकाओं से भ्रमित अवरुद्ध होने क्यूँ लगे हो।
प्रतिबद्ध होकर दृगपटल पर लक्ष्य का संज्ञान होगा,
रोक लगा कौन फिर वह कौन सा पाषाण होगा ।
शिष्ट मन के विशिष्ट जन निकृष्ट कैसे बन सकोगे,
निष्ठ तज परिशिष्ट जैसे पृष्ठ कैसे बन सकोगे।
भ्रष्ठता से क्या जलक जल तुष्टता का भान होगा,
देह पर संदेह होगा अवश्य मन अज्ञान होगा।
– भूपेंद्र राघव , खुर्जा , उत्तर प्रदेश