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ग़ज़ल हिंदी – जसवीर सिंह हलधर

लोभ लालच के गणित में धूल रिश्तों पर जमी है ।

आँसुओं में है दिखावा शुष्क आंखों में नमी है ।

 

आप गर कस्ती थे मुझको पार होना चाहिए था ,

आपके व्यवहार में तो दिख रही रूखी गमी है ।

 

रूस से यूक्रेन का अब युद्ध घटक हो चुका है ,

देख कर हरकत अनौखी सांस दुखियों की थमी है ।

 

आप मानो या न मानो पर मुझे विस्वास पक्का ,

विश्व पूरा देख आया एक जैसा आदमी है ।

 

साधनों में साधना गुम धर्म गुम आडंबरों में ,

साधुओं पर कार महँगी ज्ञान की लेकिन कमी है ।

 

जिंदगी कब तक थकायेगी नहीं मालूम मुझको ,

कौन जाने मौत कितनी सांस के द्वारे रमी है ।

 

सभ्यता दरियाब से तालाब होती जा रही है ,

हाल यदि ये ही रहा तो सूखना फिर लाज़मी है ।

 

छंद ,दोहे और ग़ज़लें, गीत भी लिखने लगा हूँ ,

शब्द का भंडार है टकसाल “हलधर” दमदमी है ।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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