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बचपन – मधु शुक्ला

सबसे सुंदर समय सुहाना, बचपन का कहलाता है,

कोष हमें शीतल सुधियों का, देकर गुम हो जाता है।

 

हृदय पटल पर छवि बचपन की,अंकित ऐसी हो जाती,

नहीं बिसरती जीवन भर जो, निकट समय पाकर आती।

बातें कर बीते बचपन से, मन बेहद सुख पाता है…… ।

 

उपहार हमें अपनेपन का, बचपन  से  मिलता  रहता।

स्नेह भरी प्रिय मृदुता से मन, धूप कठिन हँसकर सहता।

क्रोध लोभ से उर जब रूठे, बाल हृदय मुस्काता है…. ।

 

बचपन मणि की आभा धूमिल, वक्त नहीं कर पाया है।

इसे सुरक्षित रखकर मन को, मानव ने दुलराया है।

राग, द्वेष का आगम रोको, बचपन यही बताता है…… ।

— मधु शुक्ला, सतना,  मध्यप्रदेश

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