औरत होने का अर्थ ;
अन्याय सहना नहीं ,
सीनाज़ोरी नहीं ,
मर्द को देखकर सहम जाना नहीं , इल्ज़ाम देना नहीं,
औरत नाम तो…
त्याग है, अनुराग है, बैराग है…
औरत ; तो वह पैग़ाम है
जो धूप की आग बनकर
पत्थरों पर ;
मोहब्बत भरी दास्ताँ लिखती है…
औरत नाम दासी नहीं ,
उदासी नहीं,
बदहवाशी नहीं…
औरत कोमल है,
शीतल है, निर्मल है
औरत तो ;
खिलाती है पुष्प
धैर्य की ऊँची चोटीयों पर
जहाँ से दिखता हो संपूर्ण संसार…
औरत नाम है ;
कल्पना के उस सुंदर पंछी का
जो देखता है ख़्वाब ;
रसोई घर से परे
मापता है ऊँचाई ;
फ़लक से अनंत तक की…
औरत जानती है ;
अपनी आवाज़ से
स्वयं को ,
शब्दों में व्यक्त करना
आसमान की ऊँचाइयों को छूना,
सपनों को सच करना…..
अब काँपती नहीं औरत
हिचकिचाती नहीं औरत
अपना अधिकार मांगने के लिए…
औरत को ;
एक बदले नज़रिए से देखो
उसे हमराज़, हमसफ़र समझो
उसे कायनात में
सबसे मो’अतबर समझो…
हाँ सच!
औरत, नाम तो
चाँदनी की उंगलियों से
फूल की पंखुड़ियों पर
शबनम की बूंदों से
मुहब्बत की ;
कहानी लिखने जैसा है।
– डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक
लुधियाना, पंजाब