अनमना सा है मन मेरा,
नीरस से है दिन,
पत्ते झड़ रहे चारों ओ,र
शून्य सा,व्यापत हर ओर,
कहने को तो बसंत है ,
पर उदासी सी छाई है,
इस बसंत में आज यह,
कैसी पतझड़ आई है,
न कोयल की कूक है,
न आमों पर अमुराई है,
फैली है नीरवता सी,
यह कैसी बसंत आई है.
हवा चल रही सायं-सायं,
शुष्कता सी बढ़ा रही,
मन उदास तन उदास,
कुछ अनिष्ट का संदेशा ला रही।
– रेखा मित्तल, सेक्टर-43 , चंडीगढ़