मनोरंजन

मधुमासी मुक्तक – कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

चेतना फिर से जगे जब भी प्रकृति अनुकूल हो,

पल्लवित हों नव कुसुम मौसम भले प्रतिकूल हो।

पीत वसनों से सजी महिती बहुत इठला रही,

हर बरस मधुमास में बदलाव शुभ्र समूल हो।

 

पीत-नारंगी गुलाबी रंग हरियल दिख रहे,

गंध महुए की समेटे मलय मद्धम गति बहे।

गुनगुनाने का करे मन पास होली आ रही,

लौट आओ गेह को हर प्रियतम प्रिय से कहे।

– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/उन्नाव, उत्तर प्रदेश

Related posts

रावण की ओट में राजनीति का राग – राकेश अचल

newsadmin

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

newsadmin

छेरछेरा परब – अशोक यादव

newsadmin

Leave a Comment