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मेरी कलम से – डा० क्षमा कौशिक

जो बुआ है काटना भी हैं हमें यह सोच लो,

बो रहे हैं क्या? तनिक ये भी तो मन में सोच लो,

भाग्य में होगा अगर मिल जायेगा यह ठीक है,

कर्म से ही भाग्य बनता है तनिक यह सोच लो।

 

दूर शिखरों पर अनुप किरणें सजेंगी,

तरु लताएं फिर हरितिमा से रंगेंगी,

चहुँ दिशाओं में अनुप लाली सजेगी,

खग विहग कल्लोल से कुंजें हंसेंगी,

फिर से सूरज ओज भर आया करेगा,

शीत का पहरा भला कब तक रहेगा?

– डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड

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