होता बड़ा मजबूत, नेह का बंधन सखा,
त्याग कर अहं सदा, नेह अपनाइए।
माता, पिता. भाई. बंधु , चाहते हैं प्रेम सभी,
आदर प्रदान कर, आप प्रेम पाइए।
सांस बिन ज्यौं शरीर, रिश्ते त्यौं हैं नेह बिन,
प्रीति शुचि पाल मन, जीव को जगाइए।
सुख चैन हेतु मन, माँगता है अनुराग,
अनमोल प्रेम मित्र, उसे न भुलाइए।
– मधु शुक्ला. सतना , मध्यप्रदेश