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ओ बसन्त! मैं ऋणी रहूँगी – अनुराधा पाण्डेय

रे विभु बसन्त! तेरा आना…

कुसुमासव से रच प्रणय गीत।

रचता तू शाश्वत विभव प्रीत।

कर हृदय-हृदय पर हस्ताक्षर,

बुनता  प्रेमिल ताना- बाना।

रे विभु  बसन्त! तेरा आना….

 

रग-रग से बज उठते सितार ।

खिल उठते जीवन के अनार ।

कोकिल मन के कल कंठों में-

जब होता तेरा बस जाना ।

रे विभु  बसन्त !तेरा आना —

 

माधुर्य लिए पग हैं सहास ।

तू भर जाता यौवन विभास ।

क्षण-क्षण उमगित हो जगती से,

तेरे कारण मधुरिम गाना ।

रे विभु बसंत ! तेरा आना ।

अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

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