हरी धरा बनी ठनी
लगे नया तनी तनी।
लुभावनी, सुहावनी,
सदा बहार सावनी।
जवां लगे कली कली,
सजीधजी गलीगली।
जहान को निखारती,
खुशी सदा निहारती।
सँवारती दुलारती,
गले लगो पुकारती।
निगाह प्रेम पंखुड़ी
जुबान गीत की लड़ी।
हिया मिला सभी रहे,
सदा यहाँ खुशी रहे।
दुलार आसमान का,
बखान प्रेम गान का।
कभी नहीं जुबां जले,
सभी यहाँ हिले मिले।
खुशी लिये हवा बहे,
धरा सदा जवां रहे।
जरा नहीं अभाव हो,
सुभाष का प्रभाव हो।
सदा यहाँ निखार हो,
बहार हीं बहार हो।
बुरा यहाँ सदा मना,
सुखी यहाँ सभी जना।
धरा हसीन भारती,
उतार आज आरती।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड