(1)”भा”, भाग कहां रहा रे मानव
तू भाग के कहां पे जाएगा !
इस संसार में आया है तो…..,
प्रारब्ध कर्मों का फल तो पाएगा !!
(2)”ग”, गति कर्मों की चलती रहती
फ़िर-फिर के यहां आना पड़ता !
कर ले तू सत्कर्म यहां पर…..,
मोक्ष यदि तू पाना है चाहता !!
(3)”व”, वरदहस्त तू प्रभु का पा ले
आजा ‘भागवत’, की शरणनन में !
छोड़ दे सारी मोह आसक्ति….,
कर ले हरि सुमिरन तू मन में !!
(4)”त”, तप योग साधना यहां पे कर ले
श्री हरि दर्शन हो जाएंगे !
सेवा मानव की तू कर ले…..,
भव सागर से हम तर जाएंगे !!
(5)”भागवत”, भागवत की शरण में आकर
सारे पाप यहां धुल जाते हैं !
मन में बसा ले प्रभु परमेश्वर…..,
दुःख दूर सभी हो जाते हैं !!
(6)”भागवत”, भागवत सिखलाए जीवन जीना
भव सागर से पार है पाना !
है समय यहां थोड़ा ही बस….,
कर ले सुमिरन भक्ति रे मना !!
– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान