मीठी- मीठी धूप के नज़राने है,
यूं लगे पहले इश्क़ के फ़साने है।
कभी गुनगुनाये थे साथ बैठ के ,
वही तो सदियों पुराने तराने है।
नर्म धूप गुलाबी ठंड और हम,
मिलने के तो कितने बहाने है।
कभी बाहों में आना कभी रूठना,
यही वो मुहब्बत के नज़राने है।
काश वक़्त और नसीब एक हो,
कुछ दिल के किस्से बताने है।
दिल चाहे बैठे जाड़ों की धूप में,
पर निराश के तन्हा अफ़साने है।
– विनोद निराश , देहरादून