मां शारदे को नमन कर रही हूं,
अक्षर सुमन अर्पण कर रही हूं,
मन मानिकों को लय में पिरोकर,
प्रातः नमन वंदना कर रही हूं।
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दुंदुभी बज उठी गगन में बरखा झम झम बरस रही,
चपला छिपी हुई उर घन में, नर्तन करने को उमग रही,
क्या उमंग धरती अम्बर में गणतंत्र दिवस के वंदन को,
स्नात पूत हो गई वसुधा, अंबर मचला अभिनंदन को।
– डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड