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ग़ज़ल हिंदी – जसवीर सिंह हलधर

वो शख़्स खुश बहुत है जो मेरी तरह जिया ।

वो बदनसीब जिसने नहीं मय को है पिया ।

 

वो ही गिरे हैं राह में समझे न बात ये,

शर्बत समझ शराब को गटके जो शौकिया ।

 

खाना ख़राब बाग के मालिक बने हुए ,

ये मुल्क उनके हाथ में किसने थमा दिया ।

 

वो प्रश्न पूछने लगे कैसी ग़ज़ल कही,

इसका रदीफ़ क्या है बता क्या है क़ाफिया ।

 

कुछ सिरफिरे जनाब तो इतना भी कह गए ,

ये क्या लिखा है आपने लगता है मरसिया ।

 

मैंने जो अपनी बात कही है जबान से ,

ये तथ्य सत्य मान तू या मान हाशिया ।

 

कैसे जला हैं बाग ये मुझको नहीं ख़बर ,

जो भी किया है आज ये सब आप ने किया ।

 

मुझको नहीं पता है की कैसी हुई ग़ज़ल,

“हलधर” हुए अदीब जो पहले थे माफिया ।

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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