सर्दी बढ़ रही, अब दिन रात
नित बढ़ा रही हैं हमारी चिंताएं !
धूप भी बैठी कहीं ठिठुरा रही है….,
चल रही हैं घोर बर्फ़ीली हवाएं !!1!!
दुबके पड़े हैं इंसान सब घरों में
सन्नाटा सा बिखरा है चारों ओर !
सरे राहों पे दिख रहे एक आध लोग…,
जो घर की ओर ही लगा रहे हैं दौड़ !!2!!
कैसा सफ़ेद बवंडर यहां उड़ रहा
पेड़ पहाड़ घर सब बर्फ़ से ढकें हैं !
चहुँओर जमने लगे है गांव शहर….,
गरीब बेचारे सड़क के किनारे पड़े हैं !!3!!
देख सर्दी की चाल, तेवर गहरा
सबकी सिट्टी पिट्टी गुम पड़ी है !
काम पड़े हैं सबके आधे अधूरे……,
ज़िन्दगी रजाई में ही दुबकी पड़ी है !!4!!
है सर्दी का मजा रजाई गद्दो में ही
कहां बाहर जाना, घर से निकलना !
सुबह होती है आजकल ग्यारह बजे…,
दिन चार बजे फ़िर से रजाई में घुस जाना !!5!!
– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान