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कविता – मधु शुक्ला

जो सही हो पथ वही चुनना हमेशा,

व्यर्थ की परवाह मत करना हमेशा।

 

भीड़  के  पीछे  मिलेगा  लक्ष्य  कैसे,

जब वहाँ पर पथ नहीं दिखना हमेशा।

 

सोच क्षमता एक सी सब की न होती,

अनुकरण से इस लिए बचना हमेशा।

 

वक्त  देता  है  नहीं  हरदम  सुअवसर,

बुद्धि की सुन भ्रांति हर तजना हमेशा।

 

लालसा हो ‘मधु’ सुखद परिणाम की तो ,

तज  निराशा  आस  को  गहना  हमेशा।

—-  मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

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