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प्यार का गणित – अनुराधा पाण्डेय

सिद्ध करना जिसे गीत गाकर पड़े,

प्राण ! ऐसा न होता गणित प्यार का ।

व्यक्त अक्षर नहीं ,शब्द भी यह नहीं

प्रेम पर्याय है मौन संगीत का ।

इक विधा हीन-सा सच सरल व्याकरण,

मात्र होता सदा है अरी ! प्रीत का ।

जो समर्पित हुआ वो भला क्या गने,

है प्रणति या हनन लोक व्यवहार का ।

सिद्ध करना जिसे गीत गाकर पड़े,

प्राण ! ऐसा न होता गणित प्यार का ।

यह हवन प्राण का प्राण तक ही रहे,

धुम्र है या नहीं व्यर्थ की बात है ।

साघना एक ऐसी कि जिसमें नहीं,

साध्य की या कभी अर्थ की बात है ।

प्यार है सच अगर ,है सहज श्वास-सा..

तत्व इसमें नहीं भार आभार का ।

सिद्ध करना जिसे गीत गाकर पड़े ,

प्राण ! ऐसा न होता गणित प्यार का ।

पाँव को री ! अचानक प्रणय पंथ में,

इक अलौकिक धरा लब्ध हो भाव की ।

धार है यह अजब या-कि मझधार है ,

डूबते को जरूरत नहीं नाव की ।

डूब इसमें गया, पार वो हो गया –

क्या करे वो मनन धार मझधार का ।

सिद्ध करना जिसे गीत गाकर पड़े,

प्राण ! ऐसा न होता गणित प्यार का…

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका , दिल्ली

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