मनोरंजन

उम्र भर का फासला – मधु शुक्ला

उम्र भर का फासला जब हो गया स्वीकार,

बन गया पतझड़ सखा चुभते नहीं हैं खार।

 

हैं सभी रिश्ते सलामत मर गये जज्बात,

आपसे होकर जुदा ऐसे बने हालात।

 

आजकल रहते नहीं हैं याद हमको पर्व,

एक से लगने लगे हैं अब हमें दिन सर्व।

 

लिख रहा हूँ रात दिन कविता कहानी गीत,

अब कलम कागज यही तो हैं हमारे मीत।

 

होश में जो हो न उसका कौन थामे हाथ,

जी रहा हूँ इस लिये तन्हाइयों के साथ।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

Related posts

प्रेरणा व मिशन जामवंत द्वारा कवि गोष्ठी सम्मान समारोह

newsadmin

मैं विषपान करता हूं – डॉ.सत्यवान सौरभ

newsadmin

गजल. – रीता गुलाटी

newsadmin

Leave a Comment