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ये आईना – राधा शैलेन्द्र

मेरे चेहरे को किताबों की तरह पढ़ लेता है

ये आईना भी कमाल है

हर जज्बात मेरा, मुझसे पहले पढ़ लेता है!

मैं एक खामोश दरिया बन भी जाऊं

मेरे अंदर छिपे शोर वो सुन लेता है

बहती हुई नदी हो ‘तुम’

ये हौले से वो आँखों से कह देता है!

जिंदगी के कई राज

जो दिल मे छिपाये बैठी हूँ

रूबरू होती हूँ जब उसके

कहता है वो मुझसे

जरा गर्दन झुका कर देख लो

मेरा अक्स भी उसमें शामिल है!

मेरे वजूद से

वो रोज मुझे परिचित कराता है

एक मुकम्मल सूरत नारी की

वो मुझमें दिखाता है!

हौसला जब भी कम पड़ता है

जंग लड़ने का

वो सोई हुई मेरी ताकत

मुझे ही दिखलाता है!

मेरे होने न होने से किसे फर्क पड़ेगा

ये आईना मुझे वो सूरत दिखाता है

मेरी खुशियों को वो अक्सर

मुझसे पहले ढूंढ़ लेता है

मुस्कुराती हूँ मैं और

ये आईना खिल ही उठता है।

– राधा शैलेन्द्र, भागलपुर, बिहार

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