मैंने एक पुस्तक लिखी थी,
जिसमें थी श्रृंगार की बातें।
दो प्रेमियों की प्रेम कहानी,
संयोग दिन, विरह की रातें।।
राष्ट्रप्रेम की भावना जगाना,
मातृभूमि के लिए बलिदान।
खुशहाल और शक्तिशाली,
हिंदुस्तान, तिरंगे की शान।।
कोविद ज्ञानदाता की महिमा,
अध्येताओं को कराता संज्ञान।
मंजिल को पाना अंतिम ध्येय,
नित कर्म में तन्मयता,ध्यान।।
सृष्टि की रचना मनोहारी चित्र,
नील गगन के चांद और तारें।
जीव-जंतुओं की जीवन शैली,
हमको आकर्षित कर रहे सारे।।
आधुनिक दहेज प्रथा विकराल,
गौरव नारी आज हो गई लाचार।
बेगार युवाओं के मन की पीड़ा,
हावी है राक्षस रूपी भ्रष्टाचार।।
– अशोक कुमार यादव, मुंगेली, छत्तीसगढ़