है इश्क़ तुझसे कितना कह नहीं सकता,
मगर कहे बिना भी मैं रह नहीं सकता।
बिछड़ने के ख्याल से भी घबरा जाता हूँ ,
जुदाई तेरी पल भर को सह नहीं सकता।
बेशक तू चला कर जमाने की रफ़्तार से,
मैं इक ठहरा दरिया हूँ बह नहीं सकता।
बड़ी मुश्किल से हांसिल की नेमतें मैंने,
मेरे अखलाक का मंज़र ढह नहीं सकता।
न कर गौर मुझपे नज़र तुझपे रखता हूँ,,
बेशक हाथ तेरा निराश गह नहीं सकता।
– विनोद निराश, देहरादून
गह – पकड़ने की क्रिया / पकड़ने का भाव