बोस का संघर्ष बोलो क्या किसी को याद है ।
आमरण गांधी किए पर एक घर आबाद है ।
इंडिया भारत बताया चाल तो देखो जरा ,
इस तरह का विश्व में क्या दूसरा अनुवाद है ।
लाजपत लाला अलावा एक भी नेता नहीं ,
चोट सिर पर मौत का बस एक ही अपवाद है ।
देश को बांटा जिन्होंने राज गद्दी के लिए ,
आज उनकी गोद में फिर मज़हबी उन्माद है ।
गर्दिशों में कर गए जो जिस्म को ख़ाके-वतन ,
रूह उनकी आज भी लगती मुझे नाशाद है ।
कौम हिन्दू बट गयी है अब किसी से क्या कहें,
देवता पत्थर हुए हैं आदमी बर्बाद है ।
फौज पर उंगली उठाना आम बातें हो गईं ,
देश में कैसे उगा ये दोगला उत्पाद है ।
लोकशाही में यहां जुमले बहुत चलने लगे ,
चीन से चंदा लिया वो कर रहा संवाद है ।
राजनैतिक लोभ ने पागल किए हैं लोग कुछ ,
प्रश्न “हलधर” कर रहा है क्या वतन आज़ाद है।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून