मनोरंजन

हिंदी ग़ज़ल – जसवीर सिंह हलधर

बोस का संघर्ष बोलो क्या किसी को याद है ।

आमरण गांधी किए पर एक घर आबाद है ।

 

इंडिया भारत बताया चाल तो देखो जरा ,

इस तरह का विश्व में क्या दूसरा अनुवाद है ।

 

लाजपत लाला अलावा एक भी नेता नहीं ,

चोट सिर पर मौत का बस एक ही अपवाद है ।

 

देश को बांटा जिन्होंने राज गद्दी के लिए ,

आज उनकी गोद में फिर मज़हबी उन्माद है ।

 

गर्दिशों में कर गए जो जिस्म को ख़ाके-वतन ,

रूह उनकी आज भी लगती मुझे नाशाद है ।

 

कौम हिन्दू बट गयी है अब किसी से क्या कहें,

देवता पत्थर हुए हैं आदमी  बर्बाद है ।

 

फौज पर उंगली उठाना आम बातें हो गईं ,

देश में कैसे उगा ये दोगला उत्पाद है ।

 

लोकशाही में यहां जुमले बहुत चलने लगे ,

चीन से चंदा लिया वो कर रहा संवाद है ।

 

राजनैतिक लोभ ने पागल किए हैं लोग कुछ ,

प्रश्न “हलधर” कर रहा है क्या वतन आज़ाद है।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

Related posts

ग़ज़ल – विनोद निराश

newsadmin

अप्सरा (सॉनेट) – प्रॉ.विनीत मोहन औदिच्य

newsadmin

बसंत – झरना माथुर

newsadmin

Leave a Comment