प्यार कल भी था आज भी प्यार है,
बेशक हम में तल्खियां तकरार है।
लिख दिया था इश्क़नामा हमने पर,
मैंने किया इकरार उनका इंकार है।
न वो आगे बढे न मैं ही बढ़ सका,
कशमकश में इश्क़ मेरा मझधार है।
आख़िरश गलफहमी क्यूँ दरम्यां,
जब दोनों में ही इश्क़ो-खुमार है।
काश हाले-दिल समझ जाते मेरा,
तेरे बगैर ज़िंदगी मेरी दुश्वार है।
– विनोद निराश , देहरादून