तुम क्या जानो कैसे जीते हैं ,
जहरे-वफ़ा दिन रात पीते हैं।
ताउम्र रहे वो साथ-साथ पर ,
आज दोनों हाथ मेरे रीते है।
हम तो हारे कदम-दर-कदम,
संगे-दिल हर बाज़ी जीते है।
उस बेवफा की बात क्या करें,
फुरकत में जख्मो को सीते है।
अपना गम लेकर जाए कहाँ,
निराश तन्हा ही आँसू पीते है।
– विनोद निराश , देहरादून