हे भारत भू के लौह पुरुष , स्वीकार करो मेरा वंदन ।
क्यों इतनी जल्दी चले गए ,जनगण के मन में है कृन्दन ।।
तुम भारत भू के गौरव हो , तुम नए राष्ट्र के सूत्रधार ,
दोबारा भारत में आओ , करते विनती हम बार बार ।
तुम राजनीति के धर्मवीर , तुम से ही सारे कीर्तमान ,
तुम कूटनीति के राजवीर, तुम ही संका के समाधान ।
निरपेक्ष भाव से काम किया , सब तोड़े सम्प्रदाय बंधन ।
हे भारत भू के लौह पुरुष स्वीकार करो मेरा वंदन ।।1
तुम लोक तंत्र की थे मिसाल , बांटा प्रकाश अंधेरे में ,
तुम आजादी की थे मसाल , ना रुकी कभी जो घेरे में ।
भारत का एकीकरण किया , दुनियाँ में मान बढ़ाया था ,
निर्वाह किया था राज धर्म , जनजन विश्वास जगाया था ।
सब राजे और नवाबों का, कर दिया देश हित प्रबंधन ।
हे भारत भू के लौह पुरुष स्वीकार करो मेरा वंदन ।।2
तुम स्वयं त्याग की मूरत थे, तुम दीपक हठी जवानी के ,
तुम बापू के अनुयायी थे , तुम रूपक थे कुर्बानी के ।
तुम भारत भू के कर्णधार , तुम समता के सौदागर थे ,
तुम विधिक ज्ञान में पारंगत , तुम वाणी के जादूगर थे ।
उन्मूलन किया नबाबों का , कर दिया आपने संसोधन ।
हे भारत भू के लौह पुरुष, स्वीकार करो मेरा वंदन ।।3
बारदोली आंदोलन से तुम, बन गए किसानों के नेता ,
सरदार उपाधी मिली तभी , सबकी नजरों में अभिनेता ।
सरदार तरीका सिखा गए , संयम से देश चलाने का ,
जो टेडी चाल चले कोई , उसको रस्ते पर लाने का ।
हलधर “की कविता है टीका , बल्लभ के माथे का चंदन ।
हे भारत भू के लौह पुरुष ,स्वीकार करो मेरा वंदन ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून