मनोरंजन

उनके लिए – राधा शैलेंद्र

उनसे अब बात नहीं होती,

जिनसे हर बात कहने की आदत थी।

मैं शिकवा करूं भी तो खुद से क्या ?

कुछ तो हालात ने वक्त मांग लिया है मुझसे,

कुछ ख्वाइशे है जो मांगती है दूरियों का हलफनामा !

 

सुबह होती है तो आंखे ढूंढती है वो मुस्कुराना आपका,

कानों में गूंजता है प्यार से पुकारना आपका!

चाय की चुस्कियों में अब वो मिठास नहीं मिलती,

जितनी उसके साथ घुली होती थी आपके बातों में,

सोचती हूं छोड़ दूं अब इसकी गर्माहट को।

जब मिलूंगी तो फिर साथ बैठकर

महसूस करूंगी इसके बिखरे हुए जायके को!

 

शिकायतों का जमावड़ा इकट्ठा सा हो गया है

सुनने वाले कान भी अब मेरे इंतजार में है

ये अहसास होता है……….हां……..

सच कहूं आप हर लम्हें में अब याद आते है….

कुछ ज्यादा……..बहुत ज्यादा………..

– राधा शैलेंद्र, भागलपुर, बिहार

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