ख्वाहिशे- दिल धुआँ है,
क्या बताये दर्द कहाँ है।
दहलीज़ पे न आये वो,
उन्हें ये कैसा गुमाँ है।
आँखे प्यासी दीदार को ,
जलवा-ए-हुस्न कहाँ है।
तेरे बगैर ये ज़िंदगी भी,
जैसे मौसमे – खिजां है।
ढूंढ़ती रही नज़र भीड़ में ,
रब जाने गाफिल कहाँ है।
आख़िरश हाथ खाली रहे,
बस बाकी कुछ निशां है।
जिसके गम से वाबस्ता हूँ,
अब वो गैर पे मेहरबाँ है।
उम्रदराज़ ही सही निराश,
मगर ये दिल तो जवाँ है।
-विनोद निराश , देहरादून