रिश्ते जो सम्हाले ,
जतन से .
लगता हैं ,
इसके बाद,
और कुछ नही ।
प्यार की गागर ,
बह रही थी ,
भर भर कर ।
थोड़ी नाराजी ,
जी! हाँ . .
क्या हुई ,
रिसने लगे ,
गागर से,
एक एक कर ।
बस ,
रह गया खाली भ्रम ।
सब कुछ होने का. .
कोशिश होती हैं,
कभी कभी,
गागर में झांकने की ।
लेकिन. .अब. .
दिल नहीं मानता ।
– प्रदीप सहारे, नागपुर , महाराष्ट्र