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लिखवार वन विस्तार – ममता जोशी

नमन करूं मैं जन्मभूमि के,

संघर्षवान उन भाइयों को,

सदी से वृक्षारोपण किया है,

नया रुप दिया धरती को।

 

बंजर भूमि कठिन परिश्रम,

तन, मन किया समर्पण,

सिंचाई के लिए ही वन में,

अपने को किया अर्पण ।

 

बांज ,बुरांश ,देवदार के,

पेड़ सुशोभित वन में,

कहीं फलों से घिरी है डाली,

काफल,हिसर, मधुरवन में ।

 

सूरीमाता से शुरू हो गया,

पारसूरी पर खतम है वन,

आबकी गांव के एक छोर से,

घैरका गांव पर खतम है वन।

 

दल्ला के ऊपर से लेकर,

रिखडुंग तक ऊंचाई है,

खौदी से विस्तार है वन का,

कैसे की सिंचाई है।

 

वन के बीचों में है सुशोभित,

हमारी केमुंडा खाल की देवी,

चारा लेने वन को जाती,

हमारे  मायके की बहू बेटी ।

 

बहुत किया विस्तार है वन का,

जोंकाणी से आता पानी,

चारों ओर छाई हरियाली,

शुद्ध हवा और पानी।

 

अखोडगोदा,लोरी,और कटुला,

उल्खियारी  हम जाते थे,

घास,बांज , और लकड़ी को ,

खूब यही से लाते थे ।

 

लिखवार गांव से ही है रक्षक,

वन की रक्षा करने को,

गलती से कोई पेड़ काट ले,

जुर्माना पड़ता भरने को।

 

“स्नेहा” नमन उन्हें भी करती,

जो अपने धाम को चले गए,

शुद्ध हवा ,पानी और वन को,

विरासत में वह देके गए।

—–  ममता जोशी “स्नेहा”

लिखवार गांव ,टिहरी गढ़वाल

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