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मौन हूँ – शशि पाण्डेय

मौन हूँ प्रखर  होने  तक,

बेसब्र नहीं सब्र जाने तक,

सिखाती बहुत है ज़िन्दगी,

हमेशा खो कर पाने तक ॥

 

हूँ मिट्टी ढलती साँचे तक,

हूँ  छोटी रहती बाड़े  तक,

करती  नहीं  मै  ऐतबार,

हकीक़त जान पाने तक ॥

 

दरिया हूँ समंदर में जाने तक,

लड़की हूँ औरत बन जाने तक,

ममता  रहेगी  बसी  मुझमें,

पंचतत्व में मिल जाने तक ॥

 

दु:ख रहता सुख होने तक,

सुख रहता दु:ख होने तक,

जीवन का रहता यह चक्र,

आगोश में मौत के जाने तक ॥

 

प्यार है तेरे होने न होने तक,

डर नहीं मुझमें तुझे खोने तक,

तू  ही तो  है  सब  कुछ मेरा,

लेकिन विश्वास के होने तक ॥

©शशि पाण्डेय, दिल्ली

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